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एक पुरानी कथा।

एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था।बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने गुरुदेव को भी बुलाया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया। राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे। तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा - "घणी गई थोड़ी रही, या में पल पल जाय। एक पलक के कारणे, युं ना कलंक लगाय।" अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला। तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा। जब यह दोहा गुरु जी ने सुना तो गुरुजी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी। दोहा सुनते ही राजकुमारी ने  भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया। दोहा सुनते ही राजा के युवराज ने भी अपना मुकुट उतारकर नर्त

धम्मं शरणं गच्छामि।

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बुद्ध पूर्णिमा वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का दिन है। इस शुभ दिन भगवान बुद्ध ने नेपाल के लुम्बिनी नाम स्थान पर 563 बी.सी. में जन्म लिया। यह वही दिन है, जिस दिन 528 बी.सी. में उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के नीचे यह जाना कि सत्य क्या है? और इसी दिन कुशीनगर में 483 बी.सी. पूर्व 80 वर्ष की अवस्था में अपनी नश्वर शरीर को त्याग दिया। Buddha Purnima is the full moon day of the Shukla Paksha of Vaishakh month. On this auspicious day, Lord Buddha visited Lumbini, Nepal in 563 B.C. Took birth in  This is the same day as 528 B.C. In Bodh Gaya, he learned what is the truth under a tree. And on the same day in Kushinagar, 483 B.C. He abandoned his mortal body at the age of 80 years. यह एक अद्भुत संयोग है कि वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन जन्म लिया और इसी पूर्णिमा को ज्ञान भी प्राप्त किया। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही अपने शरीर को त्याग किया, इसलिए यह शुभ-दिन भगवान बुद्ध को समर्पित है और महात्मा बुद्ध की जयंती के रूप में 'बुद्ध पूर्णिमा' के नाम