महामना मदन मोहन मालवीय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय। Mahamana Madan Mohan Malaviya and Kashi Hindu University.
वर्ष 1906 में काशी (वाराणसी) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 31वाँ वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसकी अध्यक्षता श्री गोपाल कृष्ण गोखले ने की थी। 31 दिसंबर 1905 को काशी के टाउन हॉल में भारत के शिक्षा क्षेत्र के विद्वानों की एक बैठक हुई। इस बैठक का लाभ उठाकर मालवीयजी ने हिंदू विश्वविद्यालय का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के अध्ययन के लिए एक समिति बनाई गई।
In the year 1906, the 31st annual session of the Indian National Congress was held in Kashi (Varanasi), which was presided over by Shri Gopal Krishna Gokhale. On 31 December 1905, a meeting of scholars from the education sector of India took place in the town hall of Kashi. Taking advantage of this meeting, Malaviyaji proposed a Hindu University. A committee was formed to study this proposal.
20 से 21 जनवरी 1906 तक कुंभ के अवसर पर प्रस्ताव पारित किया गया कि, "बनारस में एक विश्वविद्यालय की स्थापना किया जाए, और जिसका नाम भारतीय विश्वविद्यालय हो। इस विश्वविद्यालय में श्रुति, स्मृति वैदिक, कृषि तकनीकी, ललित कला, भाषा आदि। अन्य कई विभाग हो।
On the occasion of Kumbh from 20 to 21 January 1906, a resolution was passed, "A university should be established in Benaras, which is named Indian University. This university has Shruti, Smriti Vedic, Agro-technical, Fine Arts, Language etc." There are many other departments
On the occasion of Kumbh from 20 to 21 January 1906, a resolution was passed, "A university should be established in Benaras, which is named Indian University. This university has Shruti, Smriti Vedic, Agro-technical, Fine Arts, Language etc." There are many other departments
मालवीय जी की वकालत उन दिनों खूब चलती थी, और वे सर सुन्दर लाल जी के साथ बग्धी पर सवार होकर उच्च न्यायालय का जाया करते थे। रास्ते में सर सुन्दर लाल जी बराबर उनकी चुटकी लिया करते थे --- "आपके विश्वविद्यालय के खिलौनें क्या हुआ?"
Malaviyaji's advocacy used to go well in those days, and he used to go to the High Court with Sir Sundar Lal Ji on board. On the way, Sir Sundar Lal used to pinch him --- "What happened to your university toys?"
Malaviyaji's advocacy used to go well in those days, and he used to go to the High Court with Sir Sundar Lal Ji on board. On the way, Sir Sundar Lal used to pinch him --- "What happened to your university toys?"
एक दिन मालवीय जी के पिताजी बृजनाथ व्यास जी के प्रेरणा के साथ ही साथ 51 रुपये का दान भी मिला, पिता द्वारा मिले दान को लेकर त्रिवेणी संगम पर जाकर गायत्री जाप द्वारा संकल्प लिया कि, "वह विश्वविद्यालय बनाने के लिए अपना जीवन अर्पित करेंगे।" इसी भावना के साथ घर से निकल पड़े, और याचक बनकर विश्वविद्यालय के स्थापना से पूर्व ही एक करोड़ से अधिक की धनराशि इकट्ठा कर लिये।
One day, along with the inspiration of Brijnath Vyas ji, father of Malviya ji, also got a donation of 51 rupees, going to the Triveni Sangam with the donation from his father, Gayatri chanted, "He will give his life to build a university." With this sentiment, he left the house, and as a petitioner, collected more than one crore money before the establishment of the university.
6 फरवरी 1916 में बसन्त पंचमी के दिन दोपहर में पूर्ण विधि- विधान के साथ वर्तमान में महिला महाविद्यालय के पीछे गंगा नदी के तट पर महामहोपाध्याय आदित्य राम भद्राचार्य, पंडित अम्बादास शास्त्री, पंडित प्रभुदत्त गौड़, पंडित मदन नाथ शास्त्री के नेतृत्व में भूमि पूजन किया गया।
On 6 February 1916, on the day of Basant Panchami, in the afternoon, with full rituals, presently performed Bhoomi Pujan on the banks of the Ganges River behind the present Mahila Mahavopadhyay under the leadership of MahaMhopadhyay Aditya Ram Bhadracharya, Pandit Ambadas Shastri, Pandit Prabhudatta Gaur, Pandit Madan Nath Shastri.
इस अवसर पर महाराज सुमेर सिंह (जोधपुर), गंगा सिंह (बीकानेर), जय सिंह (अलवर), मदन सिंह (किशनगढ़), उमेश सिंह (कोटा), महारावल नारायण सिंह (बनारस) सहित भारत के 15 महाराजा और बंगाल के राज्यपाल साथ तीन डोमेनन के लेफ्टिनेंट गवर्नर उपस्थित थे। विश्वविद्यालय का शिलान्यास शंकराचार्य जी के कर कमलों से बना जाना था लेकिन शंकराचार्य जी के न आने के कारण तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कठोरगन के कर कमलों से बना हुआ था।
15 Maharaja of India and Governor of Bengal along with Maharaj Sumer Singh (Jodhpur), Ganga Singh (Bikaner), Jai Singh (Alwar), Madan Singh (Kishangarh), Umesh Singh (Kota), Maharawal Narayan Singh (Banaras) on this occasion. The Lieutenant Governor of Three Domenon was present. The foundation stone of the university was to be made from the lotus tax of Shankaracharya, but due to the absence of Shankaracharya, it was made of the tax lotus of the then Governor General Lord Hardegan.
विश्वविद्यालय के कार्य का प्रारंभ, सेंट्रल हिन्दू कॉलेज कमच्छा
One day, along with the inspiration of Brijnath Vyas ji, father of Malviya ji, also got a donation of 51 rupees, going to the Triveni Sangam with the donation from his father, Gayatri chanted, "He will give his life to build a university." With this sentiment, he left the house, and as a petitioner, collected more than one crore money before the establishment of the university.
6 फरवरी 1916 में बसन्त पंचमी के दिन दोपहर में पूर्ण विधि- विधान के साथ वर्तमान में महिला महाविद्यालय के पीछे गंगा नदी के तट पर महामहोपाध्याय आदित्य राम भद्राचार्य, पंडित अम्बादास शास्त्री, पंडित प्रभुदत्त गौड़, पंडित मदन नाथ शास्त्री के नेतृत्व में भूमि पूजन किया गया।
On 6 February 1916, on the day of Basant Panchami, in the afternoon, with full rituals, presently performed Bhoomi Pujan on the banks of the Ganges River behind the present Mahila Mahavopadhyay under the leadership of MahaMhopadhyay Aditya Ram Bhadracharya, Pandit Ambadas Shastri, Pandit Prabhudatta Gaur, Pandit Madan Nath Shastri.
इस अवसर पर महाराज सुमेर सिंह (जोधपुर), गंगा सिंह (बीकानेर), जय सिंह (अलवर), मदन सिंह (किशनगढ़), उमेश सिंह (कोटा), महारावल नारायण सिंह (बनारस) सहित भारत के 15 महाराजा और बंगाल के राज्यपाल साथ तीन डोमेनन के लेफ्टिनेंट गवर्नर उपस्थित थे। विश्वविद्यालय का शिलान्यास शंकराचार्य जी के कर कमलों से बना जाना था लेकिन शंकराचार्य जी के न आने के कारण तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कठोरगन के कर कमलों से बना हुआ था।
15 Maharaja of India and Governor of Bengal along with Maharaj Sumer Singh (Jodhpur), Ganga Singh (Bikaner), Jai Singh (Alwar), Madan Singh (Kishangarh), Umesh Singh (Kota), Maharawal Narayan Singh (Banaras) on this occasion. The Lieutenant Governor of Three Domenon was present. The foundation stone of the university was to be made from the lotus tax of Shankaracharya, but due to the absence of Shankaracharya, it was made of the tax lotus of the then Governor General Lord Hardegan.
विश्वविद्यालय के कार्य का प्रारंभ, सेंट्रल हिन्दू कॉलेज कमच्छा
के भवन से ही किया गया। सेंट्रल हिन्दू कॉलेज की चर्चा आवश्यक हैं, 1893 में श्रीमती एनी बेसेंट ने भारत के लोगों की गिरती हुईं राष्ट्र भावना से दुखी होकर यहां के लोगों को सही शिक्षा देकर भारतीय आदर्शों को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से थियोसोफिकल सोसाइट्स का गठन किया।
University work commences, Central Hindu College comm was done from the building itself. Negotiations of the Central Hindu College are necessary. In 1893, Mrs. Annie Besant, saddened by the declining national sentiment of the people of India, formed Theosophical Societies with the aim of restoring Indian ideals by giving the right education to the people here.
1898 में श्रीमती ऐनी बेसेंट ने एक सेंट्रल हिन्दू कॉलेज की नींव रखी, जिसमें महाराज बनारस से पर्याप्त सहायता मिली। उन दिनों सेंट्रल हिंदू कॉलेज इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था। और इसका पहला सत्र 7 जुलाई 1898 से प्रारंभ हुआ था।
In 1898, ShriMati Anne Besant laid the foundation of a Central Hindu College, with adequate assistance from Maharaj Banaras. In those days, the Central Hindu College was affiliated to the University of Allahabad. And its first season started on 7 July 1898.
कुछ वर्षों बाद जब मालवीय जी श्री एनी बेसेंट से मिलकर अपनी समस्या बताई कि विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए सरकार द्वारा अनुमति केवल मिलेगी, जब उनके पास एक कॉलेज चल रहा होगा। इस समस्या का निवारण डॉ। एनी बेसेंट ने बिना हिचक के मध्य हिन्दू कॉलेज 1913 में सौंप दिया। 1915 में संसद के पटल पर विश्वविद्यालय संबंधितित बिल पेश किया गया, जिसे संसद द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
A few years later, when Malaviya met Mr. Annie Besant and explained his problem that the government would get permission to set up the university only when he had a college. To troubleshoot this problem, Dr. Annie Besant handed over the Hindu College in 1913 without hesitation. In 1915 a university related bill was introduced on the floor of the Parliament, which was accepted by the Parliament.
लेकिन मालवीयजी के सामने जगह की समस्या थी। तत्कालीन काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह ने नगवां और छितुपर से संबंधित गाँव मालवीयजी को विश्वविद्यालय निर्माण के लिए सौंप दिया।
But Malaviya ji had a problem with the place. The then Kashi King Prabhu Narayan Singh handed over the village to Malviya, belonging to Nagwan and Chitupar, for the construction of the university.
आज यह विश्वविद्यालय 1300 एकड़ भूमि में फैला हुआ महा मना मदन मोहन मालवीयजी के साकार यश-कीर्ति की प्रतिमा स्वरूप विश्व के पटल पर ध्वजारोहण कर रहा है।
Today, the university is hoisting the flag on the face of the world in the form of a statue of the glory of Madan Mohan Malaviya ji, spread over 1300 acres of land.
University work commences, Central Hindu College comm was done from the building itself. Negotiations of the Central Hindu College are necessary. In 1893, Mrs. Annie Besant, saddened by the declining national sentiment of the people of India, formed Theosophical Societies with the aim of restoring Indian ideals by giving the right education to the people here.
1898 में श्रीमती ऐनी बेसेंट ने एक सेंट्रल हिन्दू कॉलेज की नींव रखी, जिसमें महाराज बनारस से पर्याप्त सहायता मिली। उन दिनों सेंट्रल हिंदू कॉलेज इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था। और इसका पहला सत्र 7 जुलाई 1898 से प्रारंभ हुआ था।
In 1898, ShriMati Anne Besant laid the foundation of a Central Hindu College, with adequate assistance from Maharaj Banaras. In those days, the Central Hindu College was affiliated to the University of Allahabad. And its first season started on 7 July 1898.
कुछ वर्षों बाद जब मालवीय जी श्री एनी बेसेंट से मिलकर अपनी समस्या बताई कि विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए सरकार द्वारा अनुमति केवल मिलेगी, जब उनके पास एक कॉलेज चल रहा होगा। इस समस्या का निवारण डॉ। एनी बेसेंट ने बिना हिचक के मध्य हिन्दू कॉलेज 1913 में सौंप दिया। 1915 में संसद के पटल पर विश्वविद्यालय संबंधितित बिल पेश किया गया, जिसे संसद द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
A few years later, when Malaviya met Mr. Annie Besant and explained his problem that the government would get permission to set up the university only when he had a college. To troubleshoot this problem, Dr. Annie Besant handed over the Hindu College in 1913 without hesitation. In 1915 a university related bill was introduced on the floor of the Parliament, which was accepted by the Parliament.
लेकिन मालवीयजी के सामने जगह की समस्या थी। तत्कालीन काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह ने नगवां और छितुपर से संबंधित गाँव मालवीयजी को विश्वविद्यालय निर्माण के लिए सौंप दिया।
But Malaviya ji had a problem with the place. The then Kashi King Prabhu Narayan Singh handed over the village to Malviya, belonging to Nagwan and Chitupar, for the construction of the university.
आज यह विश्वविद्यालय 1300 एकड़ भूमि में फैला हुआ महा मना मदन मोहन मालवीयजी के साकार यश-कीर्ति की प्रतिमा स्वरूप विश्व के पटल पर ध्वजारोहण कर रहा है।
Today, the university is hoisting the flag on the face of the world in the form of a statue of the glory of Madan Mohan Malaviya ji, spread over 1300 acres of land.
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ReplyDeleteBahut achha hai .ek mahan vyktitv ke dhani the mahamana.
ReplyDeleteBahut achachha hai.
ReplyDeleteVery nice.
ReplyDeleteVery good.
ReplyDeleteVery good.
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