वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था प्राचीन व्यवस्था से सीख लें। Learn the current political system from the ancient system.


"शिष्यों ने अपने गुरु जी से प्रश्न किया कि,"महानता को मनुष्य कैसे प्राप्त किया जा सकता हैं? उत्तर मिला-- मनुष्य अपने आचरण, मनोबल और शुभ संकल्पों के प्रभाव से सम्पूर्ण समाज को अपने से भी अधिक सर्व गुण सम्पन्न बनाकर महानता को प्राप्त कर सकता हैं।"
"The disciples questioned their Guru," How can man achieve greatness?  Answer found- Man can achieve greatness by making the entire society more virtuous than himself due to the effect of his conduct, morale and good thoughts. "

प्राचीन भारतीय व्यवस्था में सांस्कृतिक जागृति को राजनीतिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। राजनीतिक व्यवस्था को इस प्रकार विकसित किया गया, जिसमें राजनीतिक व्यवस्था केवल सत्ता को प्राप्त करने की सीढ़िया बनकर न रह जाए। सत्ता भोग-विलास की वस्तु बनकर ही न रह जाए, और बल्कि राजनीतिक व्यवस्था जनता को पुत्रवत देख भाल करें व सतत संरक्षण के साथ देश का चहुमखी विकास का आधार बनाया जा सकें।
Cultural awakening has been considered an important part of the political system in the ancient Indian system. The political system was developed in such a way that the political system does not remain as a ladder to gain power. The power should not remain as an object of enjoyment and luxury, but rather the political system should be looked after by the people and can be made the basis for the all-round development of the country with continuous patronage.

जब कभी राजनीतिक सत्ता पर आसीन शासकों ने नशे में चूर होकर अपनी मनमानी करने की कोशिश की तो नैसर्गिक लोकतंत्र की भावना के अनुरूप विद्रोह का बिगुल फूंका गया है। कभी परशुराम के फरसों ने मदांध शासकों के सिर काट डाले, तो कभी हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र की सत्ता को महाभारत के युद्ध में उखाड़ फेंका और प्रजापालक, जन-प्रिय युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने। चाणक्य ने नंद वंश के अत्याचारी शासक को हटाकर सत्ता की बागडोर चंद्र गुप्त को सौंप दी।
Whenever the ruling rulers on political power drunkenly tried to do their own arbitrariness, the bugle of rebellion has been blown in the spirit of natural democracy.  Sometimes Parshuram's furs cut off the heads of the Madandha rulers, sometimes overthrew the power of Dhritarashtra in Hastinapur in the war of Mahabharata and Prajapalak the prince Yudhishthira became the king of Hastinapur. Chanakya removed the tyrannical ruler of the Nanda dynasty and handed over the reins of power to Chandra Gupta.

प्राचीन समय के ऐसे कई उदाहरण पढ़ने को मिलते हैं, राजनीतिक व्यवस्था में प्रजा के सतत विकास को ही एक मात्र आधार बनाया गया था। राजपद की उत्पत्ति को ही लोकतांत्रिक समाज की उत्पत्ति माना गया तथा शासक को देश की आत्मा के रूप में देखा गया था। प्राचीन भारतीय व्यवस्था अपनी कई विशेषताओ के कारण सर्वश्रेष्ठ और सर्वोपरि रही हैं।
Many such examples of ancient times are found to be read, the only basis for the continuous development of the subjects was made in the political system. The origin of the kingdom was considered the origin of democratic society and the ruler was seen as the soul of the country. The ancient Indian system has been the best and paramount due to its many features.

प्राचीनतम गणराज्य में सभा, समितियों और विदथ जैसी संस्थाओं का उल्लेख मिलता हैं। इन संस्थाओं का उद्देश्य सामाजिक जीवन की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुरूप ही राजनीतिक जीवन को विकसित किया गया था। सांस्कृतिक जागृति ने ही राजनीतिक जागृति को जन्म दिया था। राजा या शासक के पद और संस्थाओं का विकास लोक कल्याण की दृष्टि से किया गया था।
Institutions such as sabhas, committees and schools are mentioned in the oldest republic. The purpose of these institutions was to develop political life according to the cultural background of social life. Cultural awakening gave birth to political awakening. The posts and institutions of the king or ruler were developed with the view of public welfare.

राजा ही सर्वोच्च राजा ही होता था, उसे अपने राज्य, समाज तथा जनहित की समस्याओं का संपूर्ण रूप से विचार करना पड़ता था। जनता भी अपने अधिकार और दायित्व के प्रति जागरूक थी। सांस्कृतिक नैतिक और दार्शनिक अधिकता के कारण ही जनता का मनोबल भी विकसित हो गया था जिस कारण वह किसी भी बाहरी एवं आंतरिक विरोध, अत्याचार व शोषण का विरोध कर सकती थी।
The king was the supreme king, he had to consider the problems of his state, society and public interest in full. The public was also aware of its rights and obligations.  Due to cultural moral and philosophical excesses, public morale had also developed, due to which she could resist any external and internal protest, oppression and exploitation.

सभा के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों को शामिल किया जाता था कि वे शासन सम्बन्धी प्रमुख गतिविधियों सूक्ष्मता से विश्लेषण किया जा सकें, साथ ही साथ राजनीतिक सिद्धान्तों एवं उनके व्यवहारिक ज्ञान का नियमन किया जा सकें।
Scholars from different fields were included in the meeting to analyze the major activities related to governance, as well as to regulate political principles and their practical knowledge.

सभा एक राष्ट्रीय संस्था थी, ऋग्वेद में सभा शब्द का उल्लेख 8 बार हुआ है और अथर्ववेद में 17 बार उल्लेख मिलता है। सभा की सदस्यता कठिनाइयों से प्राप्त होता था, इसके सदस्य को लोकोपयोगी कार्य सम्पन्न कर यशस्वी हों, मृदुभाषी होने के साथ किसी विशेष क्षेत्र में योग्यता प्राप्त होनी चाहिए। स्त्रियाँ भी इस सभा की सदस्य होती थी।
The sabha was a national institution, the word sabha is mentioned 8 times in the Rigveda and 17 times in the Atharvaveda.  Membership of the House was obtained through difficulties, its member should be successful by performing public utility work, being soft-spoken and should be qualified in a particular field. Women were also members of this assembly.
एक ग्रंथ में कहा गया है कि," सभा में अधीनस्थ राजाओं का एक समूह एकत्रित हो कर विचार-विमर्श कर रहे हैं।" सभा के सदस्यों को सभेय या सभासद कहा जाता था। सभा में राजनीति के अलावा धार्मिक और सांस्कृतिक तत्त्वों पर भी विचार किया जाता था। सभा समिति से अपेक्षाकृत छोटी होती थी अर्थात सभा का बड़ा स्वरूप समिति के रूप में जाना जाता था। यह एक जन सभा थी जिसमें लोग खूब काम करते थे जिसमें राज्य एवं समाज का कल्याण हो। इसका संबंध पूरे राज्य से था।
One book states that,"A group of subordinate kings are gathering and deliberating in the assembly." The members of the assembly were called sabhayas or sabhasads. Apart from politics, religious and cultural elements were also considered in the meeting. The assembly was relatively smaller than the committee, that is, the larger form of the assembly was known as the committee. It was a public meeting in which people used to do a lot of work in which there was welfare of the state and society.  It belonged to the entire state.

विश्व के कई इतिहासकारो ने प्राचीन भारतीय राजनीति व्यवस्था की भूरि-भूरि प्रशंसा किया है। प्रसिद्ध इतिहास कार जी. वेल्स ने लिखा है कि दुनिया के इतिहास में सम्राट अशोक का कोई स्थान नहीं ले सकता है, वे अद्धितीय एवं असाधारण शासक थे, संसार के इतिहास में प्रजातंत्र की स्थापना के 5 सौ वर्ष बीत जाने के बाद भी सुशासन की चर्चा होने पर अशोक का नाम ही सुनिश्चित रूप से लिया जाता है।
Many historians of the world have praised the ancient Indian political system. Famous history car G.  Wells wrote that the emperor could not take any place of Ashoka in the history of the world, he was a unique and extraordinary ruler, even after 5 hundred years of the establishment of democracy in the history of the world, Ashoka's name after the discussion of good governance  The same is definitely taken.

सम्राट अशोक के अलावा विक्रमादित्य, राजा भोज, पुष्य मित्र शुंग, हर्ष वर्द्धन, चंद्र गुप्त मौर्य जैसे अनेक सम्राटों का नाम अद्धितीय शासन व्यवस्था के लिए लिया जाता है। भारत को राजनीतिक क्षेत्र में चक्रवर्ती सम्राट व आर्थिक क्षेत्र में सोने की चिड़िया होने व कहलाने का वैश्विक गौरव प्राप्त था।

Apart from Emperor Ashoka, many emperors like Vikramaditya, Raja Bhoja, Pushya Mitra Shung, Harsh Vardhan, Chandra Gupta Maurya are named for the unique governance. India had the global distinction of being a Chakravarti emperor in the political field and a golden bird in the economic field and called it.


जब भारत की सांस्कृतिक विरासत को छिन्न भिन्न किया गया तो सबसे पहले इस प्रभाव राजनीतिक व्यवस्था में धोर विसंगतियों के कारण प्रजा के कल्याण का भाव विदा हो गया है, गंभीर सामाजिक समस्याओं जैसे- अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, अनैतिक तरीके से सत्ता पर बनने रहने के लिए जनता को बेवकूफ बनाने के लिए छल कपट करना, एक परंपरा सी बन गया है।
When India's cultural heritage was disintegrated, first of all this effect caused serious discrepancies in the political system to leave the sense of welfare of the people, to remain in power through serious social problems like criminalization, corruption, unethical methods. Fraud deception to fool the public has become a tradition.

लोकतंत्र के मंदिर में लोकोपयोगी संवाद के स्थान पर इस प्रकार की भाषा का प्रयोग देखा जा रहा है जिसे किसी भी स्थिति में गरिमापूर्ण नहीं कहा जा सकता है, इसलिए हमें प्राचीन राजनीतिक व्यवस्था से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। प्राचीन राजनीतिक व्यवस्था के मार्ग पर चल कर हम राजनीतिक आपदा से स्वयं और राष्ट्र की रक्षा कर सकते है।
The use of this type of language is being seen in place of public utopia in the temple of democracy which cannot be called dignified under any circumstances, so we need to learn a lot from the ancient political system. By following the path of ancient political system, we can protect ourselves and the nation from political disaster.



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