भारत वर्ष की उन्नति कैसे हो। How should India's year progress?

हिंदी साहित्य के अग्रदूत व जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी के द्वारा दिसबंर 1884 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ददरी मेले के अवसर पर आयोजित आर्य देशों उपकारणी सभा में भाषण दिया था, जो आज के वर्तमान समय के 135 वर्ष पहले दिया गया भाषण कितना प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं।

भारतवर्ष की उन्नति किस प्रकार से हो सकती हैं। भारत के विकास में कौन-कौन से अवरोध हैं, और उसमें किस प्रकार से सुधारकर उन अवरोधों को जड़ से समाप्त किया जा सकता हैं।

भारतेन्दुजी ने अपने भाषण में भारतीयों की तुलना बिना इंजन के रेलगाड़ी से किया है और बताया है कि भारतीय जन-मानस को खींचना पड़ेगा क्योंकि जिस प्रकार हनुमानजी जी को उनका बल याद दिलाया कि "का चुप साधि रहा बलवाना", हनुमानजी को अपने बल का अनुभव होता हैं और वो समुद्र लांघ सीता माता का पता लगा कर और लंका को जलाकर वापस लौट आए। ठीक उसी प्रकार से भारत के लोगों को उनका बल याद करा दिया जाये तो देखिए ये लोग क्या नहीं कर सकते हैं।

भारतेन्दु जी आगे कहते है कि भारतीय जनता को उसका बल कौन याद दिलाएं? क्यों कि राजा महाराज और ब्राह्मण को और सरकारी हाकिमों को अपने लिए ही समय नहीं हैं, किसी को क्या गरज पड़ी हैं कि गरीब गंदे काले आदमियों से मिल कर अपना अनमोल समय खोवै।

बस वही मसल कि-" तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत हम अपने गम से कब ख़ाली? चलो बस हो चुका मिलना न हम खाली न तुम ख़ाली।

भारतेन्दु जी ने अपने ओजस्वी भाषण में कहा था कि समाज के लोगो में आलस्य इतना बढ़ गया है कि मलूकदास जी ने दोहा तक बना दिया कि "अजगर करै न चाकरी पंछी करै न काम। दास मलूक कहि गये सबके दाता राम।"  एक तो यहाँ रोजगार नहीं है और जो है भी वहां कोई काम नहीं करना चाहता हैं।
     
भारतेन्दु हरिश्चंद्र प्रखर राष्ट्र भक्त और सभी समाज के लोगों के उन्नति के मूल में धर्म को ही आधार बनाकर उसमें नई शिक्षा को बढ़ाने और लोगों को पढ़ने के प्रति जागरूक और कुरीतियों व विसंगतियों को दूर करने के उद्देश्य राष्ट्र को जाग्रत करने के अनेक लेख लिखे हैं।

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी साहित्यिक पत्रिकाओं "कवि वचन सुधा" और हरिश्चंद्र मैगज़ीन का सम्पादन किया। इनके द्वारा लिखे गए निबन्ध, कहानी, और अनेक काब्य संग्रह आज भी हमें देश, समाज, धर्म, शिक्षा, आदि अनेक क्षेत्र कार्य करने की प्रेरणा मिलती हैं।

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