महान वैज्ञानिक आर्यभट। Aryabhata, the great scientist.




आर्यभट
यह लेख भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, एक वैज्ञानिक के रूप में उपग्रह प्रक्षेपणयान और रणनीतिक मिसाइलो के स्वदेशी विकास के वास्तुकार रहे हैं। एस.एल.वी-3, अग्नि और पृथ्वी, उनकी नेतृत्व के कारण भारत रक्षा और वायु आकाश प्रणालियों में आत्मनिर्भर बन सका। भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान देश भर के आठ लाख से अधिक छात्रों से भेंट कर उन्होंने महाशक्ति भारत के स्वप्न को रचनात्मक कार्यों द्वारा साकार करने का आह्वान किया।
This article Dr. Abdul Kalam, as a scientist has been the architect of indigenous development of satellite launch and strategic missiles. SLV-3, Agni and Prithvi due to his leadership India became self-sufficient in defense and air-sky systems. During his tenure as the President of India, he met more than eight lakh students across the country and called for the realization of the dream of superpower India through creative works.

अरुण कुमार तिवारी जी बायो मेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर के साथ राष्ट्रपति भवन के विशाल वट वृक्ष के नीचे त्रिपुरा के शिल्पकारों के द्वारा बॉस की सुंदर कुटी का नाम "अमर कुटी" स्वंय कलाम सर ने रखा और वही आप दोनों के बीच प्रश्नों के दौरान के "आर्यभट" के संबंध जो विचार डॉ0 कलाम साहब जी ने व्यक्त किये थे," हमारे पथ प्रदर्शक, पुस्तक से अक्षरशः इस लेख में लिया है।
Arun Kumar Tiwari ji along with Professor of Bio-Medical Engineering under the huge Vat tree of Rashtrapati Bhavan, the beautiful hut of the boss was named "Amar Kuti" by Kalam Sir by the artisans of Tripura and the same during questions between the two of you "The views of "Aryabhata", expressed by Dr. Kalam Saheb, "Our guide, have taken literally from the book in this article.

आर्यभट को हम अग्रणी भारतीय वैज्ञानिक ही क्यों माना जाए जबकि आर्यभट ने शून्य का आविष्कार करके सारी दुनिया को एक बड़ी सौगात दिया है, जिसके कारण वह अमर हो गए।
Why should we consider Aryabhata as the leading Indian scientist, while Aryabhata invented zero and gave a great gift to the whole world, due to which he became immortal.

हमें समुचित ढंग से हमारी विरासत के संबंध में कभी नहीं बताया जाता है या फिर उन्हें महान पौराणिक गाथाओं के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, नहीं तो वे अंधकार में ही रह जाती है।
We are never properly told about our heritage or they are presented as great mythological legends otherwise they remain in darkness.

आर्यभट की पुस्तक "आर्यभटीयम" में विभिन्न खगोल शास्त्रीय तथा गणितीय सिद्धान्तों की व्याख्या की गई है, जिसमें पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमते हुए वर्णित किया गया है तथा सूर्य के सापेक्ष ग्रहों की परिक्रमा की अवधि भी दी गई है।
Aryabhata's book "Aryabhatiyam" explains various astrophysical and mathematical principles, describing the Earth revolving on its axis and also the period of the planets' orbit relative to the Sun.

यद्यपि पाइथागोरस ने भी इसका अनुभव और अवलोकन किया था, पर उनका अवलोकन दार्शनिक दृष्टिकोण पर आधारित था। बाद में इसे ही यूनानी वैज्ञानिको और खगोल शास्त्रीयो ने " हेलीओसेटरिज्म" का नाम दिया।
Although Pythagoras also experienced and observed this, his observation was based on a philosophical view.  Later it was called "Heliocentrism" by the Greek scientists and astronomers.

मजे की बात यह है कि पश्चिम की सभ्यता में गैलीलियो के सौर केंद्र से सम्बंधित दृष्टिकोण को 1633 ई0 तक झूठा करार दिया गया था।
Interestingly, in the Western civilization, the view of Galileo's solar center was false by 1633.


आर्यभटीयम् की रचना 118 पदों में की गई है, इसके गणितीय  खण्ड में कुल 33 पद है, जिसमें 66 गणितीय नियम दिए गए है। हालांकि इन्हें प्रमाण नहीं किए गए है। 25 पदो का एक खण्ड समय की गणना एवं ग्रहीय संरचना पर है तथा  50 पदो का एक अन्य खण्ड वृत्त एवं वलयो पर है।
Aryabhatiyam has been composed in 118 terms, there are a total of 33 terms in its mathematical section, in which 66 mathematical rules are given. However, these have not been verified.  One section of 25 posts is on time calculation and planetary structure and another section of 50 posts is on circle and rings.

गणितीय खण्ड में अंकगणित, बीजगणित, समतल त्रिकोणमिति के विषयों को सम्मलित किया गया है। इसके अतिरिक्त भी इसमें सतत गुणन खण्ड, द्विघात समीकरण, घात श्रेणियों का समुच्चय एवं ज्या की सारणी मिलती है।
The mathematical section covers the topics of arithmetic, algebra, plane trigonometry.  In addition to this, continuous multiplication division, quadratic equation, set of power series and table of sine are found.

आर्यभट ने पाई का शुद्ध मान बताया था। "आर्यभतीयम में लिखा है- 100 में यदि 4 जोड़े एवं उसे 8 से गुणा करके फिर उसमें 62,000जोड़े तो परिणाम 20000 इकाई व्यास वाले वृत्त की परिधि के लगभग बराबर होगा। इसके अनुसार "पाई" का मान 3.1416 आता है, जो कि आश्चर्यजनक ढंग से शुद्ध मान है।
Aryabhata stated the pure value of pie.  "It is written in Aryabhatiyam - If 4 pairs in 100 and multiply it by 8 and then add 62,000 to it, the result will be almost equal to the circumference of a circle with diameter of 20000 units. According to this the value of" pie "is 3.1416, which is amazingly  Is a net value of.


आर्यभट ने अंतरिक्ष में ग्रहों की स्थिति की जानकारी बड़े ही नियमवद्ध तरीके से प्रस्तुत की है। उन्होंने पृथ्वी की परिधि 4967 योजन तथा व्यास सवा 1581 योजन बताया। चूंकि 1योजन= 5 मिल अतः इसके आधार पर परिधि का मान 24835 मील निकलता है, जो कि वर्तमान में स्वीकृत 24902 मील का उत्कृष्ट अनुमान है।
Aryabhata has presented information about the position of planets in space in a very lawful manner. He described the circumference of the earth as 4967 and the diameter of 1581 as planned.  Since 1 plan = 5 mill, the perimeter value based on it turns out to be 24835 miles, which is an excellent estimate of 24902 miles currently accepted.

आर्यभट का विश्वास था कि आकाश के घूमने का आभास वस्तुतः पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण होता है। सौर मंडल की प्रकृति के विषय में यह विचार वास्तव में उल्लेखनीय है।
Aryabhata believed that the movement of the sky is actually due to the rotation of the Earth on its own axis.  This idea about the nature of the solar system is indeed remarkable.

आर्यभट ने ग्रहो की कक्षा की त्रिज्या पृथ्वी तथा सूर्य की कक्षा की त्रिज्या के सापेक्ष बताई। यह मूलतः उनके सूर्य के परिभ्रमण मे लगे समय के अनुसार परिकलित की गई थी। उनकी धारणा थी कि चंद्रमा तथा सौर मंडल के अन्य ग्रह सूर्य के प्रकाश के परावर्तन से चमकते है।
Aryabhata gave the radius of the planets orbit relative to the radius of the Earth and the orbit of the Sun. It was originally calculated according to the time taken by them to orbit the Sun. His belief was that the moon and other planets in the solar system shine through reflection of sunlight.

कितना अविश्वसनीय लगता है कि आर्यभट ने पहले ही यह विश्वास व्यक्त किया था कि ग्रहों की कक्षा वृत्ताकार न होकर वलयाकार है। सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण के कारणों की भी उन्होंने सही-सही व्याख्या प्रस्तुत की है।
It seems so incredible that Aryabhata had already expressed the belief that the orbit of the planets is circular rather than circular.  He has also given a correct explanation of the causes of solar eclipse and lunar eclipse.


आर्यभट ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने ब्रम्हांड का अपने तार्किक दृष्टिकोण से निरीक्षण किया। मैं तो उनके इस बौद्धिक विस्तार से विस्मित हो जाता हूँ। कल्पनाशीलता का ऐसा विन्यास और गुरुता उनके लगभग 1500 सालों बाद आइंस्टीन के रूप में ही लौटे।
Aryabhata was the first to observe the universe from its logical point of view.  I am astonished by his intellectual expansion.  Such a configuration and mastery of imagination returned to him as Einstein nearly 1500 years later.


Comments

  1. आप दोस्तों से अनुरोध है कि आप इसे पढ़े और अपने सुझाव दें जिससे मेरे द्वारा जो गलतियों हो रही हैं। उसमें सुधार किया जा सके।

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  2. एकदम सटीक लेख है और अपने भारतीय गौरव का मान एवं विश्व में इसका व्यापक प्रसार के लिए यह सराहनीय भी होगा ।

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    1. धन्यवाद। आपके प्रोत्साहन के लिए।

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  3. Bharat ki prachin itihash gaurav shali Raha had.

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  4. प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।

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  5. प्रोत्साहन देने के लिए धन्यवाद।

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