1857 ई0 की सैनिक क्रांति के पूर्व हुए प्रमुख विद्रोह। Major revolts before the military revolution of 1857 AD.


गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग के शासन काल के दौरान 10 मई 1857 की महान क्रांति के पूर्व भी भारतीय जनता ने अनेक स्थानों पर अलग-अलग कारणों से ब्रिटिश उपनिवेशवाद से प्राप्त सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आंदोलन किये थे। यह विद्रोह भारत के पूर्वी भाग से लेकर पश्चिम भाग तक तथा उत्तरी भाग से लेकर भारत के दक्षिण भाग तक में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया गया था।

पूर्वी भारत में हुए प्रमुख विद्रोह
चुआरो का विद्रोह
मिदनापुर जिले की आदिम जाति के चुआर लोगों ने 1768 ई0 में भूमि कर तथा अकाल के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट से प्रभावित होकर विद्रोह कर दिया।
संन्यासी विद्रोह
संन्यासी विद्रोह मुख्य रूप से 1770 ई0 में बंगाल प्रान्त के सन्यासियों के द्वारा किया गया, जिसमें बंगाल के जमींदार, कृषक और मूर्तिकार आदि सभी जनता भी इस विद्रोह में अपना अपना योगदान दिया था। 1770 ई0 में बंगाल में भयानक अकाल पड़ा जिस पर ब्रिटिश सरकार बहुत उदासीन थीं और साथ ही साथ तीर्थ यात्रा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। अकाल और प्रतिबंध के कारण वहाँ के संन्यासियो ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया, इस घटना से प्रेरित होकर बंकिमचंद्र जी ने "आनंद मठ" नामक उपन्यास की रचना किया। इसी उपन्यास से वन्देमातरम राष्ट्र गीत लिया गया है।
हो और मुण्ड तथा कोलो का विद्रोह
1820-22 ई0 तथा 1831 ई0 में छोटा नागपुर और सिंह भूमि जिलों के हो और मुण्ड नामक स्थान स्थानीय लोगों ने अंग्रेजों की कंपनी की सेना से संघर्ष किया। 1837 ई0 तक यह संघर्ष चलता रहा, साथ ही साथ छोटा नागपुर के ही कोलो ने भी 1831 ई0 में उस समय विद्रोह कर दिया जब उनकी भूमि को उनके मुखिया लोगों से लेकर मुस्लिम और सिख किसानों को दे दिया गया था। यह आंदोलन सिंह भूमि, पलामू, हजारीबाग, मानभूमि नामक स्थानों में व्यापक रूप से फैला हुआ था।
संथाल आंदोलन
"सिद्ध और कान्हू" के नेतृत्व में आदिवासियों के आन्दोलनों में सशक्त आंदोलन संथालों का ही था। यह आंदोलन भूमि कर अधिकारियों के द्वारा किये जाने वाले दुर्व्यवहार तथा जमीदारों साहूकारों के अत्याचार के विरुद्ध किया गया था। 1856 ई0 में सरकार ने सैनिक कार्यवाही के द्वारा और सन्थाल परगना की मांग को मान कर इस क्षेत्र में शान्ति स्थापित किया गया। यह स्थान भागलपुर से राजमहल के बीच का एक क्षेत्र था जिसको "दामन-ए-कोह" के नाम से जाना जाता था। यह सन्थाल बाहुल्य क्षेत्र था, जो गैर-आदिवासियों को इस क्षेत्र से भगाना चाहते थे।
अहोमो का विद्रोह
असम के कुली समुदाय के व्यक्तियों ने कंपनी पर वर्मा युद्ध के समय किये गए वायदा से मुकरने के आरोप लगाया और उसके साथ ही साथ कंपनी ने अहोम प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया तो 1828 ई0 में गोमधर कुँअर के नेतृत्व में अहोम के लोगों ने विद्रोह कर दिया, पर अंग्रेजी सेना के सामने समर्पण करना पड़ा।
खासी जाति का विद्रोह
    जब अंग्रेज अफसरों ने खासी पहाड़ी और सिलहट के मध्य सैनिकों के लिए सड़क मार्ग बनाने की योजना बनाई गई तो नक्कलो के राजा तीरत सिंह के नेतृत्व में खाम्परी और सिंहपो लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दिया। इस विद्रोह को 1833 ई0 में अंग्रेजों ने दबाया।
    पागलपंथी का विद्रोह
    पागलपंथी अर्द्ध धार्मिक सम्प्रदाय था, जिसे उत्तर बंगाल में करम शाह ने चलाया। 1825ई0 में करम शाह के उत्तराधिकारी उसके पुत्र टीपू ने जमीदारों के अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह किया। यह विद्रोह 1840ई0 से 1850ई0 तक जारी रहा।फरायजी का विद्रोह
    बंगाल के फरीद पुर का यह सम्प्रदाय शरीयतुला द्वारा अनुमोदित विचारों से प्रभावित था। यह सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक परिवर्तन के नियमों को प्रतिपादित करते थे। शरीयतुला के पुत्र दादू मियां के नेतृत्व में अंग्रेजों और जमीदारों के अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह 1838ई0 से 1857ई0 तक चलता रहा। बाद में इस सम्प्रदाय के अनेक समर्थक वहावी आंदोलन में शामिल हो गए।
    पश्चिम भारत में हुए प्रमुख विद्रोह
    भील विद्रोह
    भील जाति के लोग पश्चिम तट के खानदेश के निवासी थे। भील निवासी अपनी परंपरागत तरीके की खेती से सम्बंधित कठिनाइयों और अंग्रेजों के डर के कारण 1812-19ई0 के मध्य विद्रोह कर दिया जिसे अंग्रेजों ने किसी प्रकार दबाया था लेकिन 1825 ई0 में भील समुदाय ने 'सेवरम' के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह कर दिया। तीसरा विद्रोह1831 ई0 से1840 ई0 के मध्य हुआ था।
    कोलो का विद्रोह
    भीलों के पड़ोसी कोल लोग भी अंग्रेजों से खुश नहीं थे, इन लोगों ने भी 1829 ई0 से लेकर 1848 ई0 तक विद्रोह किया था।
    कच्छ का विद्रोह
    कच्छ और काठियावाड़ के राजा भारमल को हटाकर उनके अल्पायु पुत्र को अपनी शर्तों पर सिंहासन पर बैठाया, जिससे राजा भारमल के समर्थन में 1819ई0 में और दूसरी बार 1831 ई0 में विद्रोह कर दिया गया।
    बघेरा विद्रोह
    ओखा मण्डल के बघेरो शुरू से ही अंग्रेजों की सत्ता स्वीकार नहीं किया बड़ौदा के राजा गायकवाड़ ने अंग्रेजों की सेना की सहायता से बघेरा समुदाय से अधिक कर  वसूलने का प्रयत्न किया जिसके फलस्वरूप बघेरा के सरदार ने विद्रोह कर दिया। 1818 ई0-19 ई0 के मध्य इन लोगों ने अंग्रेजों के प्रदेश पर आक्रमण भी कर दिया। यह विद्रोह 1920 ई0 के आस-पास समाप्त हो सका।
    रामोसी विद्रोह
    पश्चिमी घाट पर रहने वाले वाले रामोसी जाति के लोगों ने 1822 ई0 में अपने नेता सरदार चितर सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह 1829 ई0 तक चलता रहा।
    गड़करी विद्रोह
    1844 ई0 में महाराष्ट्र में गड़करी जाति के विस्थापित सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह के कारण गड़करियो ने समनगढ़ तथा भुदरगढ़ के किले को जीत लिया।
    उत्तर भारत में हुए प्रमुख विद्रोह
    उत्तर भारत भी इन विद्रोहो से अछूता नहीं रह गया था। वर्तमान पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अंतर्गत आने वाले विभिन्न क्षेत्रों में 1824 ई0 में सशस्त्र विद्रोह भड़का। 1814 ई0-1817 ई0 में अलीगढ़ के तालुकेदारो और 1842 ई0 में जबलपुर के बुन्देलों ने भी हथियार उठाए जबकि 1852 ई0 में खानदेश में भी आग भड़की। 1848 ई0 - 49 ई0 का द्वितीय पंजाब युद्ध भी अंग्रेजों के विरुद्ध जनता और सेना का विद्रोह था।
    दक्षिण भारत में हुए प्रमुख विद्रोह
    विजयनगर के शासक के द्वारा विद्रोह
    94 ई0 में कंपनी ने विजयनगर नरेश को यह आदेश दिया कि वे अपनी सेना को समाप्त करें और साथ ही तीन लाख रुपये की भेंट कंपनी को दें। विजयनगर नरेश ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर अपनी प्रजा के सहयोग से विद्रोह किया। विद्रोह के दौरान ही वह अंग्रेजों से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ
    दीवान वेलाटम्पी का विद्रोह
    1805 ई0 में ट्रावनकोर रियासत के दीवान 'वेळातमपी' ने अंग्रेजों के विरुद्ध 'सहायक संधि' के विवाद को लेकर विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों को एक बड़ी सैन्य टुकड़ी का सहयोग लेना पड़ा।
    अन्य प्रमुख विद्रोह
    सूरत का नमक विद्रोह
    1844 ई0 में जब अंग्रेजी सरकार ने नमक कर 50 पैसे से बढ़ा कर 1 रूपया कर दिया, तब यहां के लोगों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह की प्रचण्ड ता देख कर अंग्रेजी सरकार को नमक कर में की गई वृद्धि वापस लेनी पड़ी।
    पॉलीगरों का विद्रोह
    1801 ई0 में तमिलनाडु में पालीगरो ने ब्रिटिश भूमि कर व्यवस्था के विरोध में वीर प कत्त्वम्मान के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह 1856 ई0 तक चला।
    वहावी विद्रोह
    1830-60 ई0 तक चले वहावी आंदोलन के सस्थापक राय बरेली के सैय्यद अहमद थे। सैय्यद अहमद इस्लाम में हुए सभी परिवर्तनों तथा सुधारों के विरुद्ध थे। उनकी सोच थीं कि हज़रत मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम धर्म को पुनःस्थापित किया जाए। इस संगठन ने भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध भावनाओं भड़काने का प्रचार-प्रसार किया। इस आंदोलन का मुख्य केन्द्र पटना था। 1857 ई0 के विद्रोह में वहावी लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया। 1860 ई0 के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने विद्रोह को दबाने में सफलता पाई।
    पाइक विद्रोह
    उड़ीसा की पाइक जाति के लोगों ने 1817-25 ई0 के मध्य अपने नेता बक्शी जगबंधु के नेतृत्व में ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध विद्रोह किया।
    फकीर विद्रोह
    बंगाल के फकीरो का विद्रोह ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध 1776-77 ई0 में मजनून शाह और चिराग़ अली शाह के नेतृत्व में हुआ था। यह विद्रोह काफी समय चला।
    रंपा विद्रोह
    आंध्र के तटवर्ती इलाकों में रंपा पहाड़ी आदिवासियों ने 1879 ई0 सरकार समर्थित मनसबदारो के भ्रष्टाचार और नये जंगल क़ानून के खिलाफ विद्रोह किया। सेना की मदद से 1880 ई0 में सरकार ने इस विद्रोह को दबाया।
    मुंडा विद्रोह
    बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा आदिवासियों का विद्रोह 1899-1900 ई0 में हुआ, पारंपरिक रूप से प्रचलित सामुहिक खेती पर जमीदारों, ठेकेदारों, बनियों, सूदखोरों के शोषण के कारण विद्रोह फूटा। बिरसा ने 'उलगुलान' की उपाधि धारण कर स्वयं को भगवान का दूत घोषित कर दिया और 1899 ई0में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर उसने मुंडा जाति का शासन स्थापित करने के लिए विद्रोह का ऐलान कर दिया।
    प्रमुख सैनिक विद्रोह
    हैक्टर मुनरो के नेतृत्व में बक्सर के युद्ध में लड़ रही एक सैन्य टुकड़ी विद्रोह करके मीर कासिम की सेना से जा मिला।
    1806 ई0 में वेल्लोर के सैनिको ने अपनी सामाजिक व धार्मिक मान्यताओं पर चोट लगने के कारण वेल्लोर में विद्रोह कर मैसूर के राजा के झंडे को फहरा दिया।
    सैतालिसवा पैदल सैन्य टुकड़ी ने पयाप्त भत्ते के अभाव में वर्मा युद्ध में जाने के आदेश की अवहेलना करके विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह 1824 ई0 में हुआ।
    1838 ई0 में शोलापुर में एक भारतीय सैन्य टुकड़ी पूरा भत्ता न प्राप्त करने के कारण विद्रोह कर दिया।









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