डिजिटल इंडिया में शिक्षक का महत्व। Importance of teacher in Digital India.
देश में शिक्षा के क्षेत्र में जो क्रांति का उदय हुआ हैं, उसमें शिक्षकों का विशेष योगदान हैं। गुरु-शिष्य परंपरा तो हमारी संस्कृति की पहचान हैं। हमारे देश में शिक्षक अर्थात गुरु को तो भगवान से भी बढ कर बताया गया है। संस्कृत का यह श्लोक दर्शाता है कि प्राचीन काल से ही भारत में गुरुजनों को कितना सम्मान दिया जाता रहा है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; ऐसे गुरु का मैं नमन करता हूँ।
आज शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से बदल चुकी हैं, जहाँ पहले गुरुकुल प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा दी जाती थी वहीँ आज ई- लर्निग का चलन आ चूका हैं। आज हम डिजिटल इंडिया में प्रवेश कर चुका हैं, जिसका असर हमारी शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ा हैं। घर बैठे ही दुनिया के किसी भी देश के शिक्षक से शैक्षणिक विकास में सहयोग मिल रहा हैं। किन्तु आधुनिक नई तकनीकी के इस दौर में हमारे शिक्षकों की भूमिका का महत्व पूर्ण हो गयी हैं। जहाँ एक तरफ हमारी साक्षरता की दर बढ़ रही हैं वहीँ दूसरी तरफ समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा हैं।
आज देश में बढती अराजकता के लिये कहीं न कहीं हमारी शैक्षणिक व्यवस्था भी जिम्मेदार हैं। बालपन की जो आधारशिला हैं, उसमें आध्यात्मिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का बीज भी अंकुरित करना अतिआवश्यक हैं। जिससे बचपन से ही बच्चों में सामाजिक मूल्यों की समझ को बढ़ाया जा सकें। परंतु हमारे देश की ये कड़वी सच्चाई हैं कि प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की अुनपस्थिती तथा बुनियादी शैक्षणिक ढांचे में बहुत कमी हैं।
आज उच्च गुणंवत्ता वाली शिक्षा के लिये अधिक फीस देनी पड़ती हैं, जो सामान्य वर्ग के लिये एक सपना होती जा रही हैं। लिहाज़ा एक बहुत बड़ा बच्चों का वर्ग उचित शिक्षा के अभाव में रास्ता भटक जाता हैं, कई जगहों पर तो नकल से पास कराने में शिक्षक इस तरह सहयोग करते हैं कि, बच्चों के मन में उनके प्रति सम्मान न रहकर एक व्यवसायी की तस्वीर घर कर रही हैं।
आज उच्च गुणंवत्ता वाली शिक्षा के लिये अधिक फीस देनी पड़ती हैं, जो सामान्य वर्ग के लिये एक सपना होती जा रही हैं। लिहाज़ा एक बहुत बड़ा बच्चों का वर्ग उचित शिक्षा के अभाव में रास्ता भटक जाता हैं, कई जगहों पर तो नकल से पास कराने में शिक्षक इस तरह सहयोग करते हैं कि, बच्चों के मन में उनके प्रति सम्मान न रहकर एक व्यवसायी की तस्वीर घर कर रही हैं।
आज शिक्षा, सेवाभाव के दायरे से निकलकर आर्थिक दृष्टी से लाभ कमाने की ओर अग्रसर हैं, जबकी शिक्षकों की जिम्मेदारी तो इतनी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं कि उनको बच्चों के सामने ऐसा आदर्श बनकर प्रस्तुत करना चाहिए जिसका अनुसरण करके विद्यार्थियों का शैक्षणिक विकास ही नही अपितु नैतिक विकास भी सार्थकता की ओर पल्लवित हो।
हमारे देश में प्रतिभावान विद्यार्थियों की कोई कमी नही हैं जरूरत हैं उन्हे तराशने और मूल्य आधारित शिक्षा के प्रकाश से अवलोकित करने की। आज भी समाज को द्वारा बताये शिक्षक की आवश्यकता हैं। कबीर जी कहा हैं कि, गुरु कुम्हार और शिष्य कुंभ है, गढी-गढी काढै खोट । अंतर हांथ सहार दे, बाहर बाहै चोट।। शिक्षक तो कुम्हार के समान हैं, जो अपने शिष्य को ऐसे तराशता हैं जिससे उसके मन में कोई भी बुराई न रह जाये और इस दौरान शिक्षक का मर्मस्पर्शी व्यवहार उसे भावनात्मक बल भी देता हैं। जिस वज़ह से छात्र का कोमल मन आहत नही होता।
कबीर दास जी ने शिक्षक को कुम्हार कहकर ये संदेश दिया हैं कि, बालक रूपी छात्र तो मिट्टी का लोथा हैं उसे किस रूप में ढालना हैं ये तो हमारे शिक्षकों की ही जिम्मेदारी हैं।
वास्तव में आज समाज को ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता हैं, जो पाठ्यक्रम का शिक्षण देने के साथ जीवन को भी सँवारने वाला शिक्षण अपने व्यक्तित्व के माध्यम से दें। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ऐसे ही आदर्श शिक्षक थे, जिन्होने न केवल व्याख्यानों के माध्यम से भारतीय दर्शन का मर्म समझाया, अपितु अपने व्यक्तित्व के माध्यम से भी शिक्षा दी।
आज 5 सितम्बर को उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना इस बात को प्रमाणित करता हैं कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे शिक्षक हो तों विद्यार्थी उनका अनुसरण करना अपना धर्म समझता हैं। ये सच हैं कि ऐसे शिक्षक आज बहुत कम हैं परंतु ये कहना भी अतिश्योक्ति न होगा कि समर्पित छात्र भी आज कम नज़र आते हैं। अतः आज शिक्षकों की जिम्मेदारी बहुत ज्यादा हैं, जो छात्रों को नैतिक मूल्य आधारित ऐसा आध्यात्मिक ज्ञान दें जिससे छात्र के मन में भी अपने शिक्षक के प्रति समर्पण का भाव जागृत हो।
शिक्षक दिवस पर हम समस्त शिक्षकों का श्रद्धापूर्वक अभिन्नदन, वंदन करते हैं और ये कामना करते हैं कि, शिक्षकों के सम्मान हेतु समर्पित शिक्षक दिवस महज़ एक पर्व बनकर न रह जाये बल्कि शिक्षक के आत्मचिंतन एवं आत्ममंथन का भी पर्व हो, जिसकी छाया में भारत का स्वर्णिम भविष्य निखर कर दुनिया में जगमगाये और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे महापुरुष शिक्षक के समर्पण से भारत शिक्षा के हर क्षेत्र में जगद् गुरु बनकर पूरे विश्व का कल्याण करें।
Bahut sunder lekh hai.
ReplyDeleteGood.
ReplyDeleteशानदार लेख सर,
ReplyDeleteकिसी महान व्यक्तित्व के कहा था की जब तक शिक्षा का मकसद के वल नौकरी पाना होगा, तब हम केवल नौकर ही पैदा करेंगे।
तक य सोच ना होके अपितु ज्ञान का आदान प्रदान जरुरी है।
Bahiya acha hai.
ReplyDeleteGood Bhai
ReplyDeleteGood Bhai
ReplyDeleteबहुत अच्छा है।
ReplyDeleteKya baat hai bhaiya.
ReplyDeleteGood.
ReplyDeleteKeep it up bhaiya.
ReplyDeleteBahut achha hai bhaiya.
ReplyDeleteGood.
ReplyDeleteNice.
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