भारत में पंचायती राज व्यवस्था।
पंचायत भारतीय समाज की बुनियादी व्यवस्थाओं में से एक रहा है। महात्मा गांधी ने भी पंचायतों और ग्राम गणराज्यों की वकालत की थी। स्वतंत्रता के बाद से ही समय–समय पर भारत में पंचायतों के कई प्रावधान किए गए और 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ इसको अंतिम रूप प्राप्त हुआ था। अधिनियम का उद्देश्य पंचायती राज की तीन स्तरीय व्यवस्था बनाई गई है, इसमें शामिल हैं–
क) ग्राम– स्तरीय पंचायत
ख) प्रखंड (ब्लॉक)– स्तरीय पंचायत
ग) जिला– स्तरीय पंचायत
• ग्राम सभा गांव के स्तर पर उन शक्तियों का उपयोग कर सकती है और वैसे काम कर सकती है जैसा कि राज्य विधान मंडल को कानून दिया जा सकता है।
• प्रावधानों के अनुरुप ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तरों पर पंचायतों का गठन प्रत्येक राज्य में किया जाएगा।
• एक राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का गठन बीस लाख से अधिक की आबादी वाले स्थान पर नहीं किया जा सकता।
• पंचायत की सभी सीटों को पंचायत क्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों से भरा जाएगा, इसके लिए, प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी और आवंटित सीटों की संख्या के बीच का अनुपात, साध्य हो, और सभी पंचायत क्षेत्र में समान हो।
अनुच्छेद 243 डी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों को आरक्षित किए जाने की सुविधा देता है। प्रत्येक पंचायत में, सीटों का आरक्षण वहां की आबादी के अनुपात में होगा। अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या कुल आरक्षित सीटों के एक– तिहाई से कम नहीं होगी।
महिलाओं के लिए आरक्षण–अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक–तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं होनी चाहिए। इसे प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरा जाएगा और महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा।
अध्यक्षों के कार्यलयों में आरक्षण– गांव या किसी भी अन्य स्तर पर पंचायचों में अध्यक्षों के कार्यालयों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण राज्य विधान–मंडल में, कानून के अनुसार ही होगा।
सदस्यों की अयोग्यता
किसी व्यक्ति को पंचायत की सदस्यता के अयोग्य करार दिया जाएगा, अगर उसे संबंधित राज्य का विधानमंडल अयोग्य कर देता है या चुनावी उद्देश्यों के लिए कुछ समय के लिए कानून अयोग्य घोषित कर देता है; और अगर उसे इस प्रकार राज्य के विधानमंडल द्वारा कानून बनाकर अयोग्य घोषित किया गया हो तो।
पंचायत की शक्तियां, अधिकार और जिम्मेदारियां
राज्य विधानमंडलों के पास विधायी शक्तियां हैं जिनका उपयोग कर वे पंचायतों को स्व– शासन की संस्थाओं के तौर पर काम करने के लिए सक्षम बनाने हेतु उन्हें शक्तियां और अधिकार प्रदान कर सकते हैं। उन्हें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बनाने और उनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
कर लगाने और वित्तीय संसाधनों का अधिकार
एक राज्य, कानून द्वारा, पंचायत को कर लगाने और उचित करों, शुल्कों, टोल, फीस आदि को जमा करने का अधिकार प्रदान कर सकता है। यह राज्य सरकार द्वारा एकत्र किए गए विभिन्न शुल्कों, करों आदि को पंचायत को आवंटित भी कर सकता है। राज्य की संचित निधि से पंचायतों को अनुदान सहायता दी जा सकती है।
पंचायत वित्त आयोग
समकालीन समय में, जैसे की शहरीकरण हुआ है और वर्तमान में, इसका तेजी से विकास हो रहा है, शहरी शासन की आवश्यकता अनिवार्य है जो ब्रिटिश काल से धीरे– धीरे विकसित हो रहा है और स्वतंत्रता के बाद इसने आधुनिक आकार ले लिया है। 1992 के 74वें संशोधन अधिनियम के साथ, शहरी स्थानीय प्रशासन व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई।
74 वें संशोधन अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
1. प्रत्येक राज्य में इनका गठन किया जाना चाहिए– क) नगर पंचायत, ख) छोटे शहरी क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद, ग) बड़े शहरी क्षेत्र के लिए नगरनिगम।
2. नगरपालिका की सभी सीटों को वार्ड के रूप में जाने जाने वाले नगरपालिका प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन में चुने गए व्यक्तियों से भरा जाएगा।
3. राज्य का विधान– मंडल, विधि द्वारा, नगरपालिका प्रशासन में विशेष जानकारी या अनुभव वाले व्यक्तियों को; लोकसभा के सदस्यों और राज्य के विधान सभा के सदस्यों, राज्य के परिषद और विधानपरिषद के सदस्यों को नगरपालिका प्रतिनिधित्व प्रदान करता है; समितियों के अध्यक्ष
4. वार्ड समिति का गठन
5. प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जातियों औऱ अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित होंगी।
6. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों की एक– तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं की जाएंगी।
7. राज्य, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को स्व– शासन वाले संस्थानों के तौर पर काम करने में सक्षम बनने हेतु अनिवार्य शक्तियां और अधिकार दे सकता है।
8. राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को कर लगाने और ऐसे करों, शुल्कों, टोल और फीस को उचित तरीके से एकत्र करने को प्राधिकृत कर सकता है।
9. प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर जिला नियोजन समिति का गठन किया जाएगा ताकि पंचायतों और जिलों की नजरपालिकाओं द्वारा तैयार योजनाओं को लागू किया जा सके और समग्र रूप से जिले के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार कर सके।
10. राज्य विधान– मंडल, विधि द्वारा महानगर योजना समितियों के गठन के संबंध में प्रावधान कर सकता है।
शहरी स्थानीय निकायों के प्रकार
1. नगर निगम
2. नगरपालिका
3. अधिसूचित क्षेत्र समिति
4. शहर क्षेत्र समिति (टाउन एरिया कमेटी)
5. छावनी बोर्ड
6. टाउशिप
7. पोर्ट ट्रस्ट
8. विशेष प्रयोजन एजेंसी
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने की दिशा में एक बहुत ही बड़ा कदम है।
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